सतीश चन्द्र धवन सरकारी महाविद्यालय लुधियाना के स्नातकोत्तर अंग्रेजी विभाग द्वारा विस्तार भाषण का आयोजन करवाया गया जिसमें मुख्य वक्ता के रूप में डॉ. संगीता हांडा(सेवानिवृत्त प्राचार्या, सरकारी महिन्द्रा कॉलेज, पाटियाला) पधारे। विस्तार भाषण का विषय : 'उत्तर औपनिवेशिक साहित्य' पर केंद्रित रहा। विस्तार भाषण के आयोजन का उद्देश्य विद्यार्थियों में उत्तर औपनिवेशिक विचारधारा से उपजे साहित्य लेखन से रु-ब-रु करना व इस विषय के विशेषज्ञ द्वारा अपनी समझ का विस्तार करना रहा। महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. धर्म सिंह संधू, अंग्रेजी विभाग की अध्यक्षा प्रो. तनवीर लिखारी व विभाग के प्राध्यापकों नने पुष्पगुच्छ के साथ मुख्य वक्ता का स्वागत किया। प्रो. हरमीत कौर झज्ज ने मुख्य वक्ता का परिचय कराया और बताया कि आज की मुख्य वक्ता डॉ. हांडा उत्तर औपनिवेशिक साहित्य के विषय विशेषज्ञ हैं जिन्हें देश के विभिन्न संस्थाओं द्वारा अकादमिक स्तर पर परस्पर विचार समन्वय की दृष्टि से विदेश यात्रा पर भी भेजा जाता रहा है। अंग्रेजी विषय में अपने मौलिक खोज के लिए पूरा पंजाब उन्हें जानता है और सेवानिवृत्ति के बाद भी आज कई विद्यार्थी उनके निर्देशन में शोधकार्य कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि डॉ. हांडा इस विषय के साथ-साथ नारी विमर्श व उत्तर नारी विमर्श पर भी गहरी पकड़ रखती हैं। दर्जनों पुस्तकों के रचयिता डॉ. हांडा को अकादमिक क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए पंजाब सरकार द्वारा राज्य पुरस्कार प्राप्त हो चुका है।
डॉ. संगीता हांडा ने पीपीटी के माध्यम से उत्तर औपनिवेशिक साहित्य लेखन पर विस्तारपूर्वक चर्चा की और उत्तर औपनिवेशिक साहित्य के सैध्दान्तिक पक्ष को भी अपने विषय का आधार बनाया। उन्होंने बड़ी गहराई व बारीकी से उत्तर औपनिवेशिक विचारधारा, इस विचारधारा के कारक, इस विचारधारा से उपजे साहित्य व उसके उद्देश्य पर प्रकाश डाला। उन्होंने यह जोर देकर कहा कि ब्रिटिश विचारधारा से जिस उत्तर औपनिवेशिक साहित्य की उपज हुई है, उसका जितना प्रभाव अफ्रीकी देशों के लेखन पर पड़ा है, उतना भारतीय लेखन पर नहीं। इसका कारण उन्होंने भारत की मजबूत भाषिक व सांस्कृतिक संरचना को माना है। उन्होंने कहा कि भारत की लोक विरासत ने आज तक इस विचारधारा से अपने आपको बचा रखा है परंतु ऐसा भी नहीं है कि भारतीय लेखन इस विचारधारा से अछूता है।
प्राचार्य डॉ. धर्म सिंह संधू ने अपने संबोधन में कहा कि साहित्य हमें अपने जीवन के अनुभवों से जोड़ता है। साहित्य तो अपनी जीवन यात्रा(अनुभव) को पृष्ठों पर अंकित करने की प्रक्रिया है जिसे भावी पीढ़ी पढ़कर न सिर्फ उससे संदेश लेती है बल्कि उन अनुभवों को पुनः जीने का उपक्रम भी करती है। इस अवसर पर विभाग के उन छात्रों को सम्मानित भी किया गया जिन्होंने साहित्य लेखन में अपनी रुचि दिखाई व प्रतियोगिता में हिस्सा लिया। कार्यक्रम के अन्त में विभाग की प्राध्यापिका प्रो. रीतिन्दर जोशी ने धन्यवाद ज्ञापित किया।
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