सतीश चन्द्र धवन सरकारी महाविद्यालय, लुधियाना में एक दिवसीय बाज़ार मेला का आयोजन किया गया। महाविद्यालय परिसर में इस मेले का भव्य आयोजन महाविद्यालय के "फिनिशिंग स्कूल" विभाग द्वारा करवाया गया। प्रोफेसर रीतिन्दर जोशी(संयोजिका, फिनिशिंग स्कूल) के कुशल निर्देशन में महाविद्यालय के लगभग 200 विद्यार्थियों ने 70 दुकानें लगाकर इस मेला को सफल बनाया।
विद्यार्थियों में बाज़ार की रुचि को समझने व अपने उत्पाद्य को ग्राहक तक पहुंचाने की कला में विकास के उद्देश्य से फिनिशिंग स्कूल की ओर से मेला का आयोजन किया जाता रहा है।
महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. धर्म सिंह संधू ने मेले की सफलता के लिए फिनिशिंग स्कूल से सम्बंधित सभी प्राध्यापकों व विद्यार्थियों को बधाई दी। उन्होंने कहा कि इस प्रकार के आयोजन से विद्यार्थी बाज़ार की मांग को समझकर ऐसे उत्पादों का उत्पादन कर सकते हैं जिससे लाभ हो सके। उन्होंने कहा कि महज कुछ घंटों में बाज़ार लगाकर अपने उत्पादों की ओर ग्राहकों को आकर्षित करना एक कला है। यह कला जहां विद्यार्थियों में व्यावहारिक गुणों का विकास करती है वहीं समय प्रबंधन के साथ-साथ संगठनात्मक गुणों की अभिवृद्धि करती है।
इस बाज़ार मेला के मुख्य अतिथि श्री संजय गोयल(लेक्मी) और विशिष्ट अतिथि श्री राहुल आहूजा(निदेशक सी. आई. आई. कंफेडरेशन ऑफ इंडिया इंडस्ट्रीज़) रहे।
प्रोफेसर रीतिन्दर जोशी ने महाविद्यालय के शताब्दी वर्ष पर भव्य बाज़ार मेला के आयोजन पर अपनी खुशी प्रकट की और कहा कि आज के विद्यार्थियों में प्रतिभा कूट-कूटकर भरी हुई है, आवश्यकता उन प्रतिभाओं को तलाश कर उसे निखारने की है। इसके लिए हमें अपने विद्यार्थियों पर विश्वास करना होगा और उन्हें यथोचित अवसर देना होगा, तभी विद्यार्थियों में आत्मविश्वास जागृत होगा। यही आत्मनिर्भर विद्यार्थी जब शिक्षा प्राप्त कर समाज में जाएंगे तब ये सिर्फ अपने परिवार के लिए ही नहीं बल्कि समाज व देश के विकास के लिए एक मजबूत आधारशिला रखेंगे। निस्संदेह आज हमारे देश को ऐसे ही एंटरप्रेन्योर की आवश्यकता है जो रोजगार पाने की अंधी दौड़ में शामिल न होकर, रोजगार देने की क्षमता रखें। उन्होंने बताया कि इसी उद्देश्य से महाविद्यालय के फिनिशिंग स्कूल द्वारा सन 2016 में पहली बार इस प्रकार के मेला का आयोजन किया गया था। इसके बाद गत वर्ष 2019 में भी इसका आयोजन करवाया गया। पिछले दोनों सत्रों की सफलता को ध्यान में रखकर इस बार का मेला पूर्व से अधिक भव्य व आकर्षक बनाया गया।
दिलचस्प बात यह रहा कि इस मेले में ग्राहक और दुकानदार दोनों ही महाविद्यालय के विद्यार्थी रहे तथा खरीद-बिक्री के लिए पैसे की नहीं बल्कि कूपन की आवश्यकता थी जो 'मेला कार्यालय' से ली जा सकती थी।
इस बाज़ार मेला में कम-से-कम लागत में बेहतर सेवा प्रदान करते हुए अधिक लाभ कमाने की स्वस्थ प्रतिस्पर्धा देखते ही बनी। यहां विशेष उल्लेखनीय है कि प्रायः जहां मेले वाले स्थान पर कचरा फैला होता है वहीं इस मेला में विद्यार्थियों ने कचरा प्रबंधन के व्यावहारिक गुड़ भी सीखे क्योंकि यह जिम्मेदारी दुकान लगाने वालों को ही दी गयी थी। आयोजक की ओर से मेले में प्लास्टिक का प्रयोग वर्जित था।
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